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C] 32 अनंतकाय
9] अनंतकाय-कंदमूल त्याग
जैनदर्शन की थीयरी ऐसी है कि, फर्स्ट नबर में बिल्कुल हिंसा रहित जीवन जीना । ऐसा यदि संभव न हो तो सेकंड नंबर में कम से कम हिंसा हो, ऐसी जीवन पद्धति से जीना । इसके लिए प्रथम नंबर में हरी सब्जी का त्याग कर देना जरुरी है । ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा का उल्लास नहीं जगता हो तो अन्त में जिस वनस्पति के अल्प भक्षण में भी अनंत जीव का संहार होता है, ऐसी अनंतकायवली वनस्पति का तो निश्चित ही त्याग कर देना चाहिये ।
कई अजैन जब जैनों को कहते हैं कि, 'अरे बनियाँ! तु भिंडी, टिंडा खाता हैं, तो गाजर, मूली, आलू खाने में क्या दोष है? ये तो दोनों वनस्पति कहलाती हैं । एक खा सकते हैं तो दूसरी क्यों नहीं?' ऐसा प्रश्न जब सामने आता है तब अज्ञात जैनों की बोलती बंद हो जाती है । वे असमंजस में पड जाते है कि अब क्या जवाब दें ?
नहीं, इसमें द्विधा में पडने की कोई जरुरत नहीं । दोनों वनस्पति है फिर भी दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है । एक वनस्पति को "साधारण-अनंतकाय कंदमूल' कहते हैं, दूसरी वनस्पति को 'प्रत्येक' कहते हैं । जो वनस्पति अनंतकाय-कंदमूल में आती है उसमें लॉट ऑफ जीव होते हैं इनफिनिट (अनंत) होते है । गिनने जायें तो गिन नहीं सकते । कोई भी आंकड़ों में उसका जवाब नहीं दे सकते इतना विराट जीवों का समूह अनंतकाय कहलाने वाली वनस्पति के एक सूक्ष्म पॉइंट पर रहता है । आलू के एक पॉइंट पर सुई की नोक से टच करो उतनी जगह पर जीवों के असंख्य शरीर रहते है और ये असंख्य शरीर मे से हर एक शरीर में अनंत जीव रहते हैं । यदि कोई जादु द्वारा मात्र एक ही शरीर में रहें अनंत जीवों को कबूतर जैसा बड़ा करके आकाश मे उडा देने में समर्थ बने तो पूरा वर्ल्ड इन जीवों से ठसाठस भर जाए तो भी ये पॉइंट में रहे जीवों को पूर्णतया खाली नही कर सकते । अब आप सोचो! अरे एक शरीर मे इतने सारे जीव हैं तो सुई की नोंक तले तो असंख्य शरीर है । एक पूरे आलू मे कितने शरीर ? ओह ! ५०० ग्राम आलू में शरीर कितने और जीव कितने?
जहाँ आलू के एक पॉइंट की जीवसृष्टी इतनी ज्यादा है वही जैनदर्शन कहता हैं कि पूरे केले के गुच्छे में मात्र एक ही जीव है । गुच्छे से केला अलग होते ही वह निर्जीव बन जाता है । भिंडी और टिंडा के जीवों को गिनने बैठो तो जितने बीज हैं, उतने जीव हैं । एक जीव छाल का गिना जाता है । ऐसे अन्य 'प्रत्येक' कहलाने वाली वनस्पति के जीवों की संख्या आंकी जा सकती है । जबकि साधारण वनस्पतिकाय कंदमूल के जीवों को आंकड़ो द्वारा दर्शा नहीं सकते ।
दोनों प्रकार की वनस्पति में इतना विशाल फर्क होने के कारण कम से कम हिंसा से जीवन जीनेवाले मानव अनंतकाय का भक्षण कैसे कर सकते हें?
जीभ के टेस्ट के लिए आलू का साग खाने बैठे व्यक्ति को यह विचार करना चाहिये कि मात्र एक जीभ के स्वाद के लिए कितने सारे जीवों को छुरी से समारा जाता है । फिर इन जीवों को उबलते पानी में कैसे बफाएँ जाते है, बफाने के बाद उसके ऊपर नमक-मिर्ची डाली जाती हैं, ऐसी कातिल हिंसा करने के बाद जब साग थाली में परोसा जाता है तब आखों में आंसू तो दूर परन्तु व्यक्ति बड़े शान से कहता है कि, 'डार्लिग! वाह! आज क्या टेस्टफूल साग बना है!' टेस्ट की तारिफ करनेवालों को कहाँ मालूम कि अनंतजीवों के संहार के बाद ये टेस्ट तैयार हुआ है । नहीं, टेस्ट के लिए ये हिंसाचार जरा भी वाजिब नहीं । शीघ्र ही अनंतकाय का भक्षण त्याग देना चाहिए।
वनस्पतिकाय
1) प्रत्येक वनस्पतिकाय : एक शरीर में एक जीव
2) साधारण वनस्पतिकाय : एक शरीर में अनंत जीव
i) साग :
1. भूमिकंद
2. आलू
3. गाजर
4. मूली - मूला के पाँचों अंग - डंठल, फूल, पत्ती, मोगरी और दाने अभक्ष्य हैं ।
5. प्याज
6. लहसून
7. वंश-करेला - नाजुक बांस का एक अवयव है ।
8. कच्ची ईमली
ii) भाजी :
10. पालक की भाजी
11. वत्थुआ की भाजी
12. थेग की भाजी
13. हरी मोथ - जलाशयों के किनारे पैदा होती है ।
14. किरालय - किसलय याने हरेक वनस्पति के उगते ताज़े कोमल पत्ते तथा भिगोये हुए कठोल के दाने से फूटते अंकुर भी प्रारंभ में अनंतकाय हैं । ऐसा जीवाजीवाभिगम नाम के आगम ग्रंथ में कहा गया है । बाद में वह प्रत्येक वनस्पतिकाय बनता है ।
iii) पत्रबेल :
15. अमृतबेल
16. विराणीबेल
17. गडूचीबेल (गलो)
18. सुक्करबेल
19. लवणबेल
20. शतावरीबेल
21. गिरिकर्णिकाबेल (गरमर)
iv) औषध :
22. लवणक - लवणक नाम की वनस्पति है, जिसको जलाने से खार उत्पन्न होता है ।
23. कुंवारपाठा
24. हरी हल्दी
25. हरा अदरक
26. कचूरी
v) जंगली वनस्पतिकाय :
27. थोर - खेतों में बाड़रुप में उगाई जाती जात-जात की थोरीयां ।
28. वज्रकंद
29. लोढ़क - तालाब में कमल जैसी तरती हरी वनस्पति ।
30. खरसईयो
31. खिलोडीकंद
32. मशरुम
उपरोक्त ३२ नामों के अंतर्गत शक्करकंद रतालु, लुण नाम के वृक्ष की मात्र छाल भी अनंतकाय होती है ।
इसके सिवाय ऊपर में कई नाम हैं, वे सभी जंगली वनस्पतियाँ हैं । जिनका वर्तमान में खास उपयोग नहीं होता । कितनी चीजों की पहचान भी मुश्किल बनी है ।
अनंतकाय वनस्पतियों के लक्षण :
जिनके पत्तों में, फलों में
- संधिया दिखती नहीं ।
- नसें दिखती नहीं ।
- गांठ वगैरह दिखती नहीं ।
- जिसको तोड़ने पर दोनों तरफ की सरफेस चीकनी दिखती है ।
- जिसे काट कर उगाने पर फिर से उग जाते है ।
- जिसमें थोड़े रेशे नहीं दिखते ।
प्रत्येक वनस्पतिकाय के लक्षण :
ऊपर बताये हुए का उल्टा लक्षण प्रत्येक वनस्पतिकाय का जानना।
Source : Research of Dining Table by Acharya Hemratna Suriji
जय जिनेँन्द्रॐ