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B] 4 महाविगई त्याग
7] मध त्याग
मधुमक्खियाँ स्वयं रहने के लिए घर बनाती हैं, उसे मधुमक्खी का छत्ता कहते हैं । मधुमक्खियाँ पुष्पों पर बैठकर फूलों का रस चूसती हैं । यह रस उनके शरीर में पच जाता है । रस पचने के बाद मधुमक्खियों के शरीर में से त्यागी हुई विष्टा का दुसरा नाम है 'शहद' । यह विष्टा मधुमक्खियाँ कभी लार स्वरूप में मुख से भी बहाती है । यह पदार्थ इतना मीठा और चिकना होता है कि दूसरे असंख्य कीड़े उसमें पैदा हो जाते हैं । शहद पाने के लिए जब मधपूड़े को गिराया जाता है और जब उसे पूरा निचोड़कर शहद छाननें में आता है तब उसके साथ-साथ अंदर पड़े हुए सैकड़ों सफेद कीड़े और मधुमक्खियों के अंडे और छोटे-छोटे बच्चे भी निचोड़ दिये जाते हैं। उसमें पडी हुई विष्टा का रस भी शहद के साथ निचोड़ा जाता है। कीड़े, अंडे, बच्चे, लार और विष्टा के संयोग से सर्जित शहद को कौन समझदार इन्सान खाने के लिए तैयार होगा ? ऐसा वेधक प्रश्न योगशास्त्र में कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरिजी महाराज ने पूछा है। "अरे ! मानव के मुंह से निकली लार को कोई चाटने के लिये तैयार नही होता है तो मधुमक्खी जैसे क्षुद्र जंतु की लार चाटने कौन तैयार होगा?'
Source : Research of Dining Table by Acharya Hemratna Suriji