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A] 4 सांयोगिक अभक्ष्य
3] आचार का त्याग
आजकल मानव की स्वादवृत्ति हद से ज्यादा बढ़ गई है। पहले मात्र केरी, मिर्ची, कैर या गुंदे का आचार बनता था। आजकल तो ककड़ी से लगाकर टींडा तक का आचार बनने लगा हैं। पहले आचार घर में बनाते थे। आचार बिगडे नहीं उसके लिए खूब-खूब प्रिकोशन लेने में आते थे। कहावत है कि, "जिसका आचार बिगड़ा उसका पूरा साल बिगड़ा।' आचार बनाने के सिस्टम में जराभी गडबड़ हो जाए तो दूसरे दिन से ही आचार की दशा बिगड़ जाती है। पूरे वर्ष यह आचार जीवों से खदबद होता रहता है । इसलिये इस देश जानकार श्राविकाएँ जब आचार बनाती थी तब पुरे उपयोगवाली बन जाती थी । आज की मॉडर्न कहलाती बहनों को आचार कैसे बनाते हैं यह भी मालूम नहीं । वे तो बाज़ार से तैयार आचार का डब्बा लाकर पति को खुश करती हैं । यह बाज़ार का आचार किस रीति से बनता है यह देखना हो तो मुंबई के पास उल्हासनगर की पीकल्स फॅक्टरीओं में जाकर देख लेना चाहिये |
बेचने के लिये तैयार किया जाता आचार का सामान किस तरह से इकठ्ठा करते हैं यह जानने जैसा है । शरबत की लॉरीओं (ठेले) और होटलों में कचरापेटी में पडे नीचोए हुए नींबू के छिलके, भायखला के सब्जी मार्केट में से सड़ी हुई साग-सब्जी और फल, सब कचरा रूपये मन के भाव में खरीद कर लाते है। फिर उसमें एसीड़ डालकर सबको पका देते है। ये एसीड़ के कारण आचार तीखा हो जाता है। जीभ पर झनझनाहट कराता है । इसलिये मिर्ची डालनी नहीं पडती । उसके बदले लाल कलर डालते है । इस तरह पूरा कचरा तैयार करने के बाद जिस चीज का आचार होगा उसका फ्लेवर डालते हैं । लोग फ्लेवर की सुगंध से केरी का सच्चा आचार समझकर खाते हैं । यह आचार यदि तीन दिन खाने में आए तो चौथे दिन मानव की जीभ पर एसीड़ के कारण छाले पड जाते हैं। फिर भी पदार्थ में नहीं लू की जीभ पर एसीड् के कारण छाले पड जाते हैं। फिर वह कोई चीज खा नहीं सकता। जगत के कोई भी पदार्थ में नहीं हो सकती इतनी मिलावट आचार में हो सकती है। ऐसे पक्के सिस्टम बिना बने हुए कच्चे आचार काे जैनदर्शन बोल-अथाणा कहता हैं। यह बोल-अथाणा याने सैंकड़ो जीवों का विराट जनरल वॉर्ड।
समझदार मानव को पहले नंबर में जीवनभर के लिये आचार का त्याग कर देना चाहिये। आचार से पेट नहीं भरता, आचार मात्र जीभ के टेस्ट के लिये उपयोग में आता है और हैरान पूरा शरीर होता है। आज करोड़ो मानव भूखे पेट सो जाते हैं, करोड़ो मानव मात्र रोटी और मिर्ची से काम चलाते हैं तब वे सभी का विचार किए बिना मानव के गले से आचार किस तरह उतरता होगा, यह बात समझ में नहीं आती। श्रीमंत लोग अगर आचार खाना छोडकर आचार का जो बजट है वह गरीब लोगों के उद्धार में लगाये तो कितना सुन्दर काम होगा।
Source : Research of Dining Table by Acharya Hemratna Suriji