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F] चार तुच्छ चीजे
19) बर्फ का त्याग
20) ओले (गार) का त्याग
बर्फ दो प्रकार के है । अत्यंत ठंडे प्रदेशों में हीमप्रपात होने से बर्फ के पर्वत बन जाते है । हिमालय की चोटी हमेशा बर्फ से आच्छादित रहती है । ठंडी में स्नो-फॉल होता है और गर्मी में बर्फ पिघलकर पानी बन जाता है । इस रीति से बने बर्फ का त्याग करना चाहिये ।
आजकल शहरों में मशीनों द्वारा पानी को जमाकर बर्फ बनाते हैं । ये बर्फ भी अभक्ष्य है । कभी बरसात के साथ आकाश में से बर्फ के गोले (गार) गिरते हैं, वह भी अभक्ष्य है ।
जैनदर्शन ने पानी की एक बूंद में असंख्य जीव का अस्तित्व देखा हैं । एक-एक जीव को यदि सरसों का रुप दिया जायें तो पूरा विश्र्व (जंबूद्वीप) भर जायेगा परन्तु जलबूंद के जीव समाप्त नहीं होंगे। ऐसी असंख्य बूंदो को इकट्ठा करते हैं, तब आईस-क्यूब बनता है । ये बरफ मतलब विशाल जलराशी । बरफ बिना का सादा पानी भी यदि छाने बिना उपयोग में ले तो सात गॉंव जलाने जितना पाप लगता है, ऐसा पुराणग्रंथो में कहा है। बिना छने पानी में इतने सारे जीव होते हैं तो बरफ का तो पूछना ही क्या ? पानी जब झीरो डिग्री पर पहुँचता तब बर्फ में रुपान्तर होता है । इस तरह रूपांतरित जल में असंख्य बेइन्द्रिय जीव उत्पन्न हो जाते है । विष्टा में खदबद करते कीड़े के जैसे बर्फ के अन्दर सफेद अत्यंत बारीक बाल जैसे असंख्य कीड़े भी देखे जा सकते हैं । आधुनिक वैज्ञानिक कॅप्टन जेकोर्सबी ने सूक्ष्मदर्शक - यंत्र की सहायता से पानी की मात्र एक बूंद में ३६,४५० हिलते - चलते जीवों को देखा है । जब पानी में इतने हैं तो बर्फ में कितने होंगे ? जरा सोचो तो सही!
यह तो हुई मात्र जीवोत्पत्ति और जीवहिंसा की बात, अब आगे सभी से यह बात कहनी है कि, जैन दर्शन का प्रत्येक सिद्धांत जैसे अहिंसा से भरा है वैसे ही आरोग्य से भी जुड़ा हुआ है । आज के व्यक्तियों के आरोग्य को नुकसान पहुँचाने का प्रधान कार्य ठंडे पदार्थ कर रहे हैं ।
जो व्यक्ति ठंडे पेय पदार्थ, आईस्कीम, फ्रीज़ का ठंडा पानी, आईस्केन्डी और अत्यंत ठंडे पदार्थ पेट में डालते है, वे पेट के अंदर की प्रदिप्त जठराग्नि को समाप्त करते हैं । जठराग्नि तमाम अग्निओं का पितामह हैं । जिसकी जठराग्नि मंद पड़ जाती है, उसकी सातो धातुओं की धात्वाग्नि अणुभट्टी भी मंद पड़ जाती है । शरीर का ऊर्जा स्टेशन मंद पड़ने के साथ ही चारों तरफ से रोग धावा बोलने लगेंगे । सर्वप्रथम व्यक्ति को भूख नहीं लगती, फिर नींद नहीं आती, भूख और नींद जाने के बाद कुछ भी खोने का रहता नहीं । बाकी का सब स्वयं चला जाता हैं । महारोग, राजरोग बिना बुलाये ही आ धमकते हैं । इस तरह कोल्डड्रींक्स, आईस्कीम और शीतल पदार्थ एक भी बूंद के रक्तपात बिना आहिस्ते - आहिस्ते व्यक्ति को मारते हैं । ऐसी मृत्यु को आईस्कीलींग कह सकते हैं ।
इस देश के मानव तो जब खाने का समय होता था तब लकड़ी और छेने की धीमी आंच में बनी गरमा - गरम रसोई खा लेते थे । यहाँ पहले से बनाकर रखना या फ्रीज में छुपाकर रखने का रिवाज़ नहीं था । भोजन याने गरम ही होता था । कोई भी भोजन को शीतल बनाकर खाता नहीं था। आज व्यक्ति यदि गरम रसोई खाता होंगा तो वह गरम रसोई गुण करे उसके पहले ही पेट के अंदर थम्सअप की बॉटल डाल देते है। आजकल संपूर्ण समाज ने ठंडे पेय पदार्थों के परवान न चढ़कर खूद की जठराग्नि को खत्म कर दी है।
Source : Research of Dining Table by Acharya Hemratna Suriji