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D] चार प्रकार के फल
12] तुच्छफल त्याग
जो फलों में गुदा ज्यादा नहीं होता उसे तुच्छफल कहते हैं । जिसमें खाना कम और फेंकना ज्यादा. वह तुच्छफल कहलाता हैं । बहुत सारे फलों को खाने के बाद भी पेट में अल्प बेलेन्स रहती है, ऐसे फलों को खाने का कोई अर्थ नहीं । यह रिज़ल्ट बिना की व्यर्थ मेहनत करने जैसा है ।
ऐसे तुच्छफल तृप्ती नहीं दे सकते । उल्टा कचरा खूब फेकना पडता है । इस कचरे में कीड़े, मक्खी आदि जीव-जन्तु चिपकते है । लोगों के पैरो के नीचे आकर मर जाते हैं । इसतरह बहुत बड़ी विराधना होती है । चिडीयॉं के जैसे पूरे दिन चुगने की यह प्रवृत्ति छोड़ दे ।
तुच्छफल : बेर, ताड़फल, पीलु, पीचु, पके गुंदे, ईमली की मोर आदि ।
इतना छोड दो तो अच्छा !
इन तुच्छफलों के जैसे दूसरे कितने पदार्थ भक्ष्य होते हुएँ भी विराधना के कारण, लोकविरुद्ध के कारण छोड़ देना चाहिए । उदा. गन्ना, सीताफल, रायण, गुदा, जामुन, बेर, हरी अंजीर, सेतुर, सिंग आदि का चीकाश मिठासवाला कचरा फेकने के बाद पीछे बहुत जीव-जन्तु की विराधना संभव है । इसलिये नहीं खाना उचित है । सिंगोडा, फणस, कच्ची मुंगफली, छिलके वाली सेमी, पापड़ी (मिक्स-सब्जी बनाते है) वगैरह में जीव - विराधना संभव है इसलिये छोड़ देना चाहिए । लाल टमाटर को कितने ही लोग विदेशी बैंगन की जाति बताते हुए अभक्ष्य कहते है । कितने ही लोग उसका रंग लाल खून जैसा होने से मन के परिणाम बिगड़े नहीं इसलिये त्यागने का कहते हैं। उसी तरह लाल हो गये करेले, टिंसी भी नहीं उपयोग करना चाहिये । हर एक जाति का सिट्टा (पोंख) भी छोड़ देना चाहिये । जिसे सेंकते वक्त जयणा हो नहीं सकती । कोला (कद्दु) भैंसे के मस्तक के प्रतीक रुप यज्ञ में होमा जाता है । इसलिये लोगविरुद्ध समझकर न खाना अच्छा ।
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It's true