22 अभक्ष्य पदार्थ – पार्ट 2 Recipe by Jain Rasoi 573 days ago

22 अभक्ष्य पदार्थ - पार्ट 2
    A] 4 सांयोगिक अभक्ष्य

    2] चलित रस का त्याग

    चलितरस का त्याग यह जैन दर्शन की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है । कोई दर्शनकारों की या वैज्ञानिकों भी की जहाँ नजर नहीं पहुंची वहाँ प्रभु महावीर की दृष्टि पहुंची हैं । प्रभु ने फरमाया हैं कि- भक्ष्य कहलाते पदार्थ भी जब उनके असली स्वरूप, ओरिजीनल स्वाद, सुगंध, स्पर्श और कलर खो बैठते है तब वे अभक्ष्य बन जाते है । ये पदार्थों के भक्षण में जीवों की हिंसा तो होती ही है साथ में आरोग्य की भी हानि होती है ।

    जैसे मेडिकल फैक्टरी में बनती दवाओं के लेबल पर उसकी एक्सपायरी डेट छपती है । मर्यादित समय के बाद इन दवाओं का पावर खत्म हो जाता है । जैसे घर में रहे हुए फर्निचर भी कुछ समय बाद सड़ने लगते हैं । जैसे प्लास्टिक की बाल्टी भी टूटती है । वैसे ही हर एक पदार्थ के सलामत रहने की एक टाईम लिमीट होती है। यह लीमीट पूरी होते ही उन पदार्थों का स्वरुप भी बदलने लगता है । पदार्थ का स्वरूप बदलने पर पदार्थ भक्ष्य होने पर भी अभक्ष्य बन जाता है ।

    ऐसे सड़ते हुए पदार्थों में हिलते-चलते त्रस जीव, फूलन, निगोद के जीव उत्पन्न होते है जो आरोग्य को हानि पहुचाते है और आत्मा को हिंसा का भयंकर दोष लगता है । ऐसे चलितरस वाले पदार्थो के भक्षण से फुडपॉइज़न, डायरियॉं आदि केस कई जगह पर बनते है । चलितरस का मतलब जिसका स्वाद चलायमान हो गया हो, वे पदार्थ । उपसंहार से जिसका वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, चलायमान हो गया हो, अलबत्त, चला गया हो वे सब चलितरस कहलाते हैं । इस कारण जैनदर्शन ने कई पदार्थों की फिक्स काल मर्यादा निश्चित की है । परन्तु कभी बनावट या, मिलावट में भूल होने के कारण अंडर लीमीट भी पदार्थों का स्वरूप बदल जाता है । तो वे पदार्थ अंडरलीमीट होते हुए भी अभक्ष्य हो जाते है । उदा. : - बूंदी के लड्‌डू की 1५ दिन तक की मर्यादा हैं परन्तु लड्‌डू बनाकर गरम - गरम ही डब्बे में भर दिये । रात्रि में उसमे से भाँप का पानी निकलेगा । भाँप के पानी के कारण सबेरे लड्‌हु का स्वाद तथा कलर दोनों बदल जायेगा, उस पर काय उग जाएगी । ये लड्‌डु 15 दिन के बदले दूसरे दिन ही अभक्ष्य बन जायेगा। अब हम क्रमशः चलितरसवाले पदार्थोंको समझेंगे।

    i) दूसरे दिन अभक्ष्य बनते पदार्थ : 

    जिन पदार्थो में पानी का अंश रहा जाता है वे सभी पदार्थ 'बासी' कहलाते है | पानी स्वयं एक ऐसी ताकत रखता है कि वो जिस पदार्थ के साथ मिलता है, उस पदार्थ को थोड़े समाया में ही सड़ा देता है |

    रात बासी पदार्थ :
    रोटला / रोटली / भाकरी
    पुडला
    भजिया
    वडा
    समोसा
    दूधपाक / खीर
    मलाई
    बासुंदी
    फ्रुटसलाद
    गुलाब जामुन
    जलेबी
    बंगाली मिठाई
    पानीवाली चटनी

    ii) बहुत दिनों बाद अभक्ष्य बनते पदार्थ :
    जैन दर्शन ने सूखे पदार्थो की एक स्टैण्डर्ड लिमिट निश्चित की है | जिन पदार्थो को सेककर बनाते है, जिन पदार्थो को तलकर बनाते है, जिन पदार्थो को चासनी बनाकर रखते है | वे पदार्थ उपरोक्त दीर्घ समय तक भी सलामत रह सकतें हैं | एसे पदार्थों की समय मर्यादा में सीज़न के अनुसार परिवर्तन करने में आती है |

    a) शिशिर : का. सुद १५ से फा. सुद १४ तक (टाइम लिमिट - ३० दिन)
    b) ग्रीष्म : फा. सुद १५ से अ. सुद १४ तक (टाइम लिमिट - २० दिन)
    c) वर्षा : अ. सुद १५ से का. सुद १४ तक (टाइम लिमिट - १५ दिन)

    iii) बहुत महिनों बाद अभक्ष्य बनते पदार्थ :
    कई पदार्थों का प्राकृतिक स्वरूप ही ऐसा होता हैं कि वे चार-आठ महीने तक चल सकते हैं | कई पदार्थो कि तैयार करने की पध्दति इतनी जोरदार होती है कि वे पदार्थ लम्बे समय तक चल सकते हैं | उदा. पापड़, बड़ी, खिचिया
Source : Research of Dining Table by Acharya Hemratna Suriji

 

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