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परदेश में स्थूलता का प्रमाण धीरे - धीरे बढ़ता जा रहा है । मोटापे ने ऐसा गंभीर स्वरुप पकड़ा है कि चिकित्सक चिंता में पड़ गये हैं, कारण कि अनेक आधुनिक रोगों का जन्मदाता मोटापा है और मोटापा कम करने के लिये आधुनिक विज्ञान ने एक हि सूत्र जगत को दिया है, 'कम केलरीवाला खाना खाओ और रफेज का प्रमाण बढाओं' ।
आधुनिक आहारशास्त्र साग की इतनी तरफदारी क्यों करता है? उसके तीन कारण है : -
1. साग में रफेज का प्रमाण खूब है ।
2. साग में खूब कम केलरी मिलती है ।
3. साग में विटामीन्स और क्षार अच्छे प्रमाण में है । अब इस मुद्दे पर क्रम से चर्चा करेंगे । जब कोई भी प्रजा खूद के खुराक की त्रुटी का अभ्यास करने बैठे तब उसकी नजर के समक्ष खूद का आहार ही होता है । इसलिये स्वाभाविक तरीके से उन्हे उनके आहार में साग का उपयोग नहींवत् दिखा और यह झूठ भी नही है कारण कि वहाँ प्रोटीन, फेट और कार्बोहाइड़ेट भरपूर प्रमाण में खाने में आता है । सिर्फ साग की कमी है । मांस, मच्छी, अंडा, मैंदा की ब्रेड, चीज, फुट ज्यूस, दूध 'वगैरह में रफेज बिल्कुल नहीं होता। इसलिये उसकी पूर्ति के लिये उनकी नजर साग ऊपर पडी । अत्याधिक प्रोटीन और केलरी से पीडाती प्रजा साग की शरण ले यह स्वाभाविक है। इसलिये साग पाश्चात्य लोगों के लिये आदर्श खुराख कह सकते हैं।
हमारे खुराक की खामी :
1. अपनी प्रजा की बात करें तो अपने खुराक में सर्व प्रथम कमी है की बड़े हिस्से में प्रजा को पेट भरकर खाना ही नहीं मिलता | पोषण के कमी की बात तो बाद में लेकिन पूरी केलरी भी नहीं मिलती |
2. दूसरी बड़ी खामी है प्रोटीन के अभाव की | आज हिंदुस्तान में अगर छोटे बच्चो से पूछने में आये की अपनी खुराक में क्या कमी है? तो छोटा बालक भी तुरंत कहेगा की 'प्रोटीन की' |
3. अपना आहार मुख्यतः कार्बोहाइड्रेट प्रधान कर रहा है | गेहूं, चावल, ज्वारी, बाजरी, मक्का वगैरह धान्य कार्बोहाइड्रेट खाद्य कहलातें हैं| साग का समावेश भी कार्बोहाइड्रेट में करना हो तो कर सकते हैं परंतु बहुत कम प्रमाण में है| साग मे न तो प्रोटीन है न फेट|
यहाँ यह याद रखना आवश्यक है की कार्बोहाइड्रेट के अधिक उपयोग से (और प्रोटीन के अभाव से ) ही स्थूलता, डायबिटीस जैसे रोग उत्पन्न होते हैं और बढ़ते हैं| स्थूलता बढ़ने से हृदयरोग, ब्लडप्रेशर, आर्थराईटिस, स्ट्रोक, सर्दी और कफ के विकार तथा केंसर भी होता है|
4. शाकाहारी को चरबी के लिए घी, तेल, मख्खन ही आधार है, जबकि मांसाहारी लोगों को मांस, मछली, अंडे में से चरबी मिल जाती हैं|
साग के पक्ष में कुछ मुद्दे :
1. अधिक प्रमाण में रफ्फेज
2. खूब कम केलरी
3. वीटामींस और क्षार का प्रमाण
1. साग में रफ्फेज का प्रमाण : शाक के रफ्फेज के लिये इतना अधिक प्रचार करने में आया है की मानो शाक के अलावा दूसरे किसी खाद्य पदार्थों में रफ्फेज है ही नहीं | जबकि इन्ही लोगों के द्वारा जिन द्रव्यों में फाईबर है उनकी जो लिस्ट दी गयी है, उसमें साक का उल्लेख ही नहीं है| कंदमूल और भाजियों का उल्लेख हैं| उनके मातानुसार अधिक प्रमाण में फाईबर हो ऐसे द्रव्यों की यादी निम्न लिखित है : गेहूं, तथा अन्य अनाज, सभी प्रकार के कठोल धान्य, कंदमूल, भाजी, फल| परंतु हम जब साक खाते हैं तब ये दोनों वीटामिन उसमें नहीं होते | कारण की विटामिन 'सी' गरमी से तुरंत ही नष्ट हो जाता हैं| जबकि विटामिन 'ए' साग बनाते वक्त शाक को बार-बार हिलाने से नष्ट हो जाता है, जिसे अंग्रेजी में ओक्सिदेशन (Oxidation) कहते है| जिस बर्तन में साग बनाते हैं उसका ढक्कन बार-बार खोलने से भी विटामिन 'ए' का नाश होता है, रहा सिर्फ थोड़ा क्षार | साग को समारकर पानी में धोने और बाफने में थोड़ा क्षार नष्ट हो जाता है| साग को छीलने से भी बहुत सारा क्षार छाल के साथ निकल जाता है| इसलिए जब हम साग खाते है तब उसमें विटामिन्स नहीं होता मात्र थोडा बहुत क्षार होता हैं|
तो फिर साग में रहा क्या? किसके लिए खाए?
साग में आहार के तीन मुख्य घटकों (प्रोटीन, चर्बी, कार्बोहाइड्रेट) में से एक भी नहीं, नहीं विटामिन्स, रहा थोडा बहुत क्षार और फाईबर |फाईबर भी अनाज की अपेक्षा में बहुत कम है| फाईबर एक ऐसी चीज़ हैं जिसका शरीर में पाचन हो नहीं सकता|
Times of India में एक लेख आया था -
The Importance of Eating Fibre
"Although fibre plays an important role in the digestive system, it is itself indigestible. There is relatively little scientifc evidence that fibre is useful in treating or in lowering the risk of developing other digestive system disorders.
A controversial claim made about fibre is that it lowers the risk of cancer of the colon."
अर्थात पाचनतंत्र में फाइबर महत्त्वपूर्ण हिस्सा रखता है| यह याद रखना जरूरी है कि फाइबर स्वयं बिलकुल पचनेवाला पदार्थ नहीं है| पाचनतंत्र के रोगों की सारसंभाल में फाइबर है, ऐसा विज्ञानं ने अभी तक पुख्ता पुरावा नहीं दिया है|
फाइबर अंतड़ियो के कैंसर को मिटाने के लिए उपयोगी है, यह बात भी आज तक विवादस्पद ही रही है| बर्कीट नाम के एक ब्रिटिश डॉ. ने अफ्रीका में बीस साल तक इसपर संशोधन किया और फिर घोषणा की कि ब्रिटेन और अमेरिका में हृदयरोग, गोल्स्तों, डायबिटीज, अंतड़ियो का केंसर जैसे उपद्रव जो ज्यादा प्रमाण में होते है उसका अफ्रीका में लाब्भाग अभाव था, उसका कारण फाइबर बताया था और उसके बाद फाइबर की महत्ता खूब बढ़ गई है| परंतु यहाँ डॉ. इस दावे के लिए बहुत शंकाशील थे| उन्होंने कहा था कि ये तो युगानुयोग (Circumstantial evidence) है, यह साबिती (Proof) नहीं है| इसलिए फाइबर -फाइबर की जो बात फैलाने में आई है वह स्वयं विवादस्पद (controversial) है| परंतु दूसरा कोई कारण खोज नही सकने के कारण लगभग सभी ने यह स्वीकार लिया है|
यहाँ इतना याद रखना कि में फाइबर के विरुद्ध नहीं परंतु साग के फाइबर के विरुद्ध हूँ| क्योंकि साग के फाइबर पच सके ऐसे नहीं है, जब की अनाज, कठोल में रहे फाइबर पच सकते है|
फाइबर का वैज्ञानिकों ने एक दूसरा नाम दिया है :- अपचनीय कार्बोहायड्रेट (Unavailable Carbohydrate). Food and the Principles of Dietics में लेखक लिखते है कि The Value of these unavailable carbohydrate or roughage in diet has been and still is overrated. Vegetables contain large amount os cellulose. However no enzymes capable of hydrolyzing cellulose are secretes by the human digestive tract. Consequently cellulose cannot be considered to be a food for the human being, though it can be utilized by some lower animals.
अर्थात कार्बोहायड्रेट के दो विभाग है| 'अवेलेबल' अर्थात सुपाच्य और 'अनअवेलेबल' अर्थात अपाच्य| इस अपाच्य कार्बोहायड्रेट के रुफ्फेज को विज्ञान और वैद्कीय जगत ने ज्यादा महत्व दिया है| साग में विपुल प्रमाण में विपुल प्रमाण में सेल्यूलोज रहता है परंतु अंतड़ियो या जठर का कोई भी एन्जाइम्स इसे पचा नहीं सकता और इसलिए इसे मानव के लिए नहीं बल्कि जानवरों के लिए खुराक कहना ज्यादा योग्य है|
Food and the Principles of Dietics में लेखक लिखते है की, 'Any regime which utilizes large amounts of Roughage or Purgatives will entail :
(i) loss of nutrient material to the body
(ii) the passage of unabsorbed proteins, fat and carbohydrates into the large intestine.
अर्थात जो भी चिकित्सापद्धति ज्यादा प्रमाण में रुफ्फेज या रेचक द्रव्यों का उपयोग करती है, तो उससे शरीर को पोषक तत्त्व नहीं नहीं मिलते तथा प्रोटीन, फेट और कार्बोहायड्रेट का शोषण हुए बगैर ही बाहर निकल जाता है|
यदि साग में एक भी तत्त्व न हो, उसका पाचन शक्य न हो, यदि साग नि:खुराक हो तो वह शरीर के लिए कोई भी तरीके से उपयोगी होने की बात तो दूर रही बल्कि अनेक नए रोग उत्पन्न करने की शक्ति धारण करते हैं, ऐसा कहे तो अतिशयोक्ति नहीं| कूचा नहीं तो उत्पन्न हुए रोगो को वह मिटने नहीं देते| ऐसी नि:सत्व खुराक शरीर में डालने की क्या जरूरत है?
Source : Research of Dining Table by Acharya Hemratna Suriji