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खानपान की अनेक विविधता से भरे आज के भौतिक युग में धार्मिक अंधमान्यता के बहाने अनेक फरारी खाकर उपवास रखते हैं । सप्ताह में दो-तीन ग्रहों की शांति तथा प्रसन्नता के लिये ज्योतिषाचार्य एक टाईम खाने का कहते हैं । सच्चे अर्थ में उपवास शब्द में उप अर्थात् आत्मा के पास वास (रहना) । अर्थात् उपवास के दिन परमात्मा के अंश स्वरुप आत्मा का केवल विचार करके अन्य भौतिक वासना, खानपान, भोग को भूलकर एक निष्ठ होने का प्रयत्न करना चाहिये ।
भौतिकता से विचारें तो पेट के ऊपर बारबार अत्याचार करने के बाद सप्ताह, पखवाडे या महीने में एक-दो दिन पाचनतंत्र को आराम दो । केवल उष्णोदक, फलाहार या लघु आहार लो ।
उपवास निसर्गोपचार में औषधरुप बनता है । रुटीन जीवन मे विविध पदार्थ आहार में नियम विरुद्ध या अतिमात्रा में लेते है । जिसका परिणाम कई मेटाबॉलिक जहर शरीर में धीरे-धीरे जमा होते हैं । जिसके कारण जीवन रक्षक अवयव तथा शरीरयंत्र की कामगीरी पर अस्वाभाविक बोझ पडता हैं । अब जब उपवास दरम्यान पाचनतंत्र में आहार का बोझ कम होता हैं तब शरीर की बची शक्ति कुदरती तरीके से उत्सर्गतंत्र के अवयवों को सतेज बनाकर शुद्धि का कार्य त्वरित करने लग जाती हें । जिससे शरीर में से मल-पेशाब द्वारा विष - तत्त्व बहार निकलने लगते हैं । शरीर में चयापचय की क्रिया सुधरने से कोषो में रहे हुए विषाकतत्त्व जलने लगते हैं । जिससे कोष पूर्ववत् निरोगी होकर आयुष्य तथा कार्यक्षमता बढ़ने लगती है ।
आयुर्वेद की प्राचीन परंपरानुसार लंघन अर्थात् उपवास को अमोघ शस्त्र माना गया है क्यों कि शरीर में आमदोष अर्थात् झठराग्नि मंदता के परिणाम से उत्पन्न होते अपक्व आहार, रस शरीर के स्त्रोतो में जाकर अनेक रोगों को जन्म देता हैं । इस आमरस का उपवास के दरम्यान शरीर के जठराग्नि तथा धात्वाग्नि का बल बढ़ने से स्वाभाविक रुप से ही पाचन होने लगता है । जिससे रोग का बल कमजोर पड जाता है । रोग निराम होने से औषधि अच्छी तरह काम करने लगती है ।
आयुर्वेद में कुछ आमप्रधान रोग जैसे कि जर, अतिसार (जुलाब), उल्टी, अजीर्ण, आमवात, आलस, चर्मरोग, सर्दी-खांसी, आंख तथा पेट के रोग, गंभीर चोट तथा पाक, मलबंध, शरीर की स्थूलता तथा रसप्रदोषज विकारों में उपवास अर्थात् लंघन करने का आदेश दिया है ।
उपवास के बाद शरीर तथा मन में स्फूर्ति का संचार होता है । शरीर हल्का होता हैं । भूख लगने लगती है, पेट साफ होता है । आमदोष दूर होने से रोग के लक्षणों में भी कमी आती है ।
उपवास दरम्यान यदि शरीर का बल कम हो तो हल्का भोजन जैसे कि मुंग का पानी, उबाले हुए मुंग, फलरस, केवल गरम दूध, चावल का पानी, भाजी व. के सूप के ऊपर रह सकते हैं । बहुत से रोगों में लंबे समय तक ऐसे उपवास रखने पडते हैं परन्तु शरीर बल तथा अग्निबल देखकर विवेक रखकर जानकार व्यक्ति की सलाह अनुसार उपवास करना चाहिए । भूखमरी और उपवास अलग बात है । आम का पाचन होने के बाद किया गया लंघन । जठराग्नि, शरीर की धातुएँ व. का क्षय करके शरीर बल की हानी करते है ।
लंबे समय के उपवास के बाद तरन्त ही चालु खुराक नहीं खाया जाता । क्रमशः फल, दूध, हल्के पदार्थ, प्रवाही, सूप, थूली, खाखरा, रोटी जैसी सादी खुराक प्रारंभ में शुरु कर सकते हैं । जिससे पाचनशक्ति पूर्ववत् होने से शरीर में योग, क्षेम तथा नवजीवनकार्य संपादित होते हैं ।
(जैनदर्शन में हर 1५ दिन में प्रायश्चित्त स्वरुप एक उपवास करने का फरमान किया गया है । वह कितना यथार्थ है; यह बात ऊपर के लेख से आप समझ गये होंगे ।)
Source : Research of Dining Table by Acharya Hemratna Suriji
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