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आयुर्वेद के पितामह चरकऋषि ने अपने ग्रथों में आहार, आरोग्य और अध्यात्म की अद्भूत बातें कही हैं । वे सभी आज अमेरिका के साइंटिस्ट स्वीकार कर अमल में ला रहे हैं । कुछ बातें यहां प्रस्तुत : -
1. धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का आधार आरोग्य है ।
2. प्रमाण में ग्रहण किया हुआ युक्ताहार सुख और आयुष्य को बढ़ाता है ।
3. सभी व्याधियों का मूल कारण अयोग्य आहार है ।
4. स्वाद की लोलुपता के कारण पसंदीदा भोजन पर टूट नहीं पड़ना ।
5. देह एक महल है । १. आहार 2. निंद्रा 3. ब्रह्मचर्य ये महल के तीन स्तंभ हैं ।
6. हितभोजी, मितभोजी, कालभोजी बनो । जब चाहे, जितना चाहे, जो चाहे वह खाते नहीं रहना।
7. हंमेशा भूख लगने के बाद उष्ण, स्निग्ध, प्रमाण सर, योग्य स्थान में. (हॉटल में नहीं), योग्य बर्तन में, जरा भी जल्दबाजी किये बिना और बहुत देर किये बिना खाएँ ।
8. खाते वक्त बोलना नहीं, हँसना नहीं । मन को भटकाना नहीं, बिल्कुल स्थिर मन करके अच्छे तरीके से खाएँ (टी .वी. देखते-देखते न खाएँ ।)
9. जरुरत से ज्यादा खुराक खाया हो उसके स्पष्ट लक्षण निम्न अनुसार है :
a. पेट तनने लगता है ।
b. पेट की दोनों साइड ज्यादा फूल जाती है ।
c. पेट में तान का अनुभव होता है ।
d. पेट भारी लगता है ।
e. उठने-बैठने में तकलीफ होती है ।
f. श्वास लेने में मुश्किल होती है ।
g. सुबह पेट साफ नहीं हुआ तो समझना कि जरुरत से ज्यादा माल कोठी में भरने की मुर्खता की है।
10. भारी (मिठाई), ठंडा (कोल्ड्रींक्स), लुखा (फास्टफुट), सुखा (ब्रेड-पाव), कठण (पीपरमेंट, चॉकलेट), अपवित्र (हॉटल का) और अकाल में (रात्रि में) विरुद्ध खुराक खाने से तथा मन में गुस्सा, सेक्स, जेलसी, ईगो, मोह, भय, शरम, उद्वेग और संताप आदि रखकर खाने से शरीर में बड़े से बड़े रोग पैदा करनेवाला आम (ईन्डायझेशन) वगैरह दोष उत्पन्न होते हैं ।
11. शरीर के रोग मिटाने के तीन उपाय हैं : -
a. देवश्रद्धा, मंत्रजाप, नियम, मांगलिक कार्य आदि,
b. औषध योग
c. मन का निग्रह तथा, स्वजनो के अंतर का आद्यासन अचूक लाभ करने वाला होता है । (ही अब यह डॉक्टर्स भी मानते है ।)
12. मन के रोग, चिंताएँ, विकल्प और डीप्रेशन जैसे रोगों में ज्ञान, विज्ञान, धीरज, ईश्वरस्मृति और समाधि आदि इलाज अच्छा परिणाम लाते है । (साइंटिस्ट भी अब यह बात स्वीकारते है ।)
13. धर्म को हानि न हो ऐसे तरीके से धंधा करने से जीवन में शांति, शास्त्रस्वाध्याययोग और सुख की प्राप्ति होती हैं ।
14. लोक-परलोक में सुख की ईच्छावाले व्यक्ति नीचे दर्शाये हुए आवेगों को अवश्य रोकें । अयोग्य वर्तन, लोभ, शोक, भय, क्रोध, अभिमान, निर्लज्जता, ईर्ष्या, अतिराग, परपीडा, कटुवचन, चुगली, चोरी, झुठ, वाचालता, स्त्रीसंभोग, हिंसा । इन आवेगों को नहीं रोकने से रोग होते हैं ।
15. सदैव निरोगी रहने के लिये पापी, लड़ाईखोर, चुगलखोर, भड़भड़िया, छीछोरा, मश्करा, इर्ष्यालू, लोभी, निंदक, लुच्चा, चंचल, निर्दय, अधर्मी, जैसे नराधम व्यक्तियों की कभी भी संगत नहीं करना; दूर से ही त्याग कर देना । ऐसे व्यक्तियों के संग से भी रोग उत्पत्र होते हैं ।
16. जिसे सदैव खुद का आरोग्य सलामत रखना हैं। उसे नीचे लिखे नियमों को अवश्य पालने चाहिये :-
a. झुठ नहीं बोलना, हराम का पैसा नही लेना, पराई स्त्री की मनसे इच्छा भी नहीं करनी ।
b. बैर का तुरन्त विसर्जन कर देना । मन में गाठ नहीं बांधना । पापीओं के प्रति भी द्वेष नहीं करना । किसी की गुप्त बात जाहिर नही करना ।
c. गुनेहगार, अधर्मी, हल्कट, दुष्ट, व्यक्तियों के साथ बैठने का व्यवहार भी नहीं रखना । गर्भहत्या- एबोर्शन) करने वाले के साथ बैठना भी नहीं ।
d. ऐक्सीडन्ट का भय हो ऐसे वाहन पर सवार होना नहीं, जोर से हंसना नहीं, मंदिर की ध्वजा, गुरु और खराब वस्तु की परछाई कभी लांघना नहीं, अनार्यो के साथ कोई व्यवहार करना नहीं ।
Source : Research of Dining Table by Acharya Hemratna Suriji