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तारक जिनेश्वरदेव सर्वज्ञ हैं । वे प्रत्येक चीज के गुणदोष के ज्ञाता है । आज के साइंस को तो वनस्पतिमें जीव स्वीकारने के लिये सर जगदीशचंद्र बोज़ का जन्म हुआ तब तक राह देखते बैठना पड़ा । बोज़ की खोज के बाद साइंस ने वनस्पति में जीव माना । वनस्पति के क्या गुण-दोष है ये जानने के लिये महिनों तक लेबोरेटरी में खोज करनी पड़ती है । संशोधन के बाद जारी किये हुए सिद्धांत भी सदा अधुरे होते हैं। वर्षो के बाद मान्यताऐं बदलनी पड़ती है। एक समय टूथपेस्ट में रहनेवाला फ्लोराईड दांतों के लिये लाभदायक माना जाता था । अतः उसके अॅडवरटाइज़ में 'फ्लोराईड युक्त' लिखा जाता था परन्तु अभी पिछले कुछ वर्षो में पता चला कि फ्लोराइड दांतो के लिये नुकसानदायक है । इसलिये हर एक टूथपेस्ट वाले खूद की एडवरटाइज में लिखते है कि 'फ्लोराइड मुक्त' युक्त में से मुक्त में आ गये। दवाओं के विषय में तो ऐसा कितनी बार बना है, पेनेसीलीन, ऐस्प्रीन जैसी कितनी दवाइयॉं अब हानिकारक समझकर बंद कर देने में आई है ।
साइंस के सिद्धांत हमेशा के लिये अधूरे और अपूर्ण है । जिनेश्वर देव की बताई हुई बातें कभी भी झूठी साबित नहीं कर सकते । भगवान ने जो फरमाया है वह लेबोरेटरी का रिजल्ट नहीं है। वह ज्ञान का परिणाम है । बिना संशोधन, मात्र साधना द्वारा संप्राप्त निर्मल कैवल्यज्ञान के प्रकाश में देखी है हर चीज की पूर्वावस्था, वर्तमान अवस्था और उसकी भावी अवस्था।
प्रत्येक खाद्य पदार्थ का फिज़ीकल और मेन्टल इफेक्टस (प्रभाव) परमात्मा ने देखा है । जो- जो पदार्थ प्रभु को डेन्जर लगे उन पदाथा का फाटक बंद कर दिया और उस मार्ग पर जानेवाले नरनारियों को बचा लिया।
धर्म द्वारा विज्ञान :
इस देश में पूर्व के काल में जीव इतने सरल, भद्रिक और धार्मिक थे कि उन्हें आरोग्य की, आहार की कोई बात समझानी होती तो उनके लिए धर्म की बात बतानी पड़ती थी। धर्म के द्वारा उन्हें कोई भी चीज सरलता से समझ आ जाती थी । इसलिए पूर्व ऋषियों ने आरोग्य की कई बातें धर्म के माध्यम से लोक जीवन में उतारी थी । हर एक धर्म में आदा से ज्यादा पर्व और त्योहार वर्षाकाल में आते हैं । उस समय सब भिन्न-भिन्न तप करते हैं। जैनों में पर्युषण पर्व ओली अट्ठाई अट्ठम वगैरह । अजैनों में गौरीव्रत श्रावण सोमवार गणेश चर्तुथी नवरात्री आदि तप हैं । वर्षाकाल में ये सब तप करने का कारण हैं कि चौमासे में जठराग्नि बिल्कुल मंद पड़ जाती है। उन दिनों में जितने उपवास ज्यादा हो उतना आरोग्य बढ़ता है । खाने से तबीयत बिगडती रुके और निरोगी रहकर व्यक्ति जादा से ज्यादा सत्कार्य में प्रवृत्त रह सके इसलिये ये तप बताये हैं ।
ऐसी कई बातें धर्म के स्वरुप में लोग जीवन में उतार सकते थे परन्तु पिछले कई वर्षो में यूनिवर्सिटी से पढ़लिखकर जो पीढ़ी बाहर निकली है उनके आगे अब धर्म का सिद्धांत काम नहीं करता । लॉर्ड मॅकोले की शिक्षण पद्धति ने हृदय से धर्म के प्रति श्रद्धा खत्म कर दी हैं, अब तो हाउ एण्ड व्हाय का जमाना आया है । इसलिये परिस्थिति ऐसी आ गई है कि धर्म की बात भी अब हमें साइंस के माध्यम से तुम्हारे गले उतारनी पड़ती है । कोई बात नहीं क्योंकि हर एक धर्मसिद्धांत के पीछे श्योर कुछ न कुछ साइंस अवश्य छपा हुआ है । अब हमें साइंस और धर्मसिद्धांत को समझना है ।