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ब्लेड नही तलवार : "क्लिनिकल फार्म कॉलेज" में लिखा है कि बिनअनुभवी डॉक्टर अंधाधुंध दवाईयाँ देकर नए रोग पैदा करने का अधम कृत्य करते हैं । सामान्य रोग में डॉक्टर इतनी सारी दवाईयाँ देते हैं कि कपडा सीने के लिये सुई के बदले भाला और दाढी बनाने के लिये ब्लेड के बदले तलवार देने जैसी स्थिति हो जाती है ।
आज व्यक्ति खूद के पॉकेट में अेस्प्रीन, सेरीडॉन, स्टोपेक, लार्जेकटीव जैसी दवाईयॉं लेकर घूमते हैं और थोडी तकलीफ होने पर लेते रहते हैं। जिससे खुराक की अरुचि, नींद, जडता आदि विकृति होती हैं।
इस 'देश दुनिया' की बातों का सारांश इतना ही है कि हम जीभ को वश में रखे फिर चिंता करने की जरुरत नहीं । जिसका जीभ पर कंट्रोल नहीं उसे कब कौनसा रोग होगा इसका भरोसा नहीं । अपने यहाँ कहा गया हैं कि "रसमूलानि व्याधय:' व्याधियों की जड जीभ में हैं, स्वाद में हैं । टेस्ट छोड दो तो शरीर बेस्ट रहेगा। निरामयदेह धर्मसाधना का अंग है। धर्म के प्रभाव से चित्त में शांति, प्रसन्नता और आनन्द बढ़ता है ।
मानव पहले टेस्टफूल चीजें झपटता है जिससे रोग उत्पन्न होते हैं । जितनी वैरायटी खाई हो उससे ज्यादा दवाईयाँ खाते हैं । खाते वक्त जरा सोचो कि कौनसे पदार्थ कौनसे रोग पैदा करते हें?
- मिष्ठान, नमकीन, आईस्क्रीम, पीझा और पावभाजी खानेवाले को सोरयासीस (चमडी का रोग) होता है । हृदयरोग, केन्सर भी होता है ।
- खूब मीठे पदार्थ खाने से कृमि और डायबिटीज रोग होते हैं । व्यक्ति शक्कर खाते वक्त विचार नहीं करता । फिर जब डायबिटीज होता है तब कडवा रस पीता है । ब्लडशुगर बढ़ न जाए इसलिये शुगर रहित फीकी चाय पीते है । कंदमूल, मेंदुबडा, प्याज के भजिये, भेलपुरी, आलूवडा, लहसून की चटनी, मिर्ची का आचार खाने से स्वभाव चिडचिडा, तेज बन जाता है । पेट में अल्सर होता है । काम विकार विशेष जागृत होते हैं वीर्य का नाश होता है और सिर के बाल झडते हैं ।
- पानपराग, सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा आदि व्यसनों द्वारा केंसर, टी.बी., अस्थमा और लीवर के रोग होते हैं ।
यह सब बाते आपको भडकाने, डराने के लिये नहीं है, यह सत्य हकीकत है । तुम समझो और वापस लौट जाओ । परमात्मा ने जो मक्ष्य-अभक्ष्य का विवेक दिखाया है वहाँ तुम चूक गये हो । सदगुरू उपदेश द्वारा स्वाद की पराधीनता छोडने के लिये तथा कंदमूल-रात्रिभोजन त्याग के लिये बार-बार प्रेरणा करते हैं तो भी जीवन में उतारने के लिये कोई विरले ही तैयार होते है । परन्तु जब डॉक्टर कहते हैं तब मानते हैं । एक लेखक ने कहा है कि गुजरातियों को मिष्ठान, नमकीन और आचार छुडवाने के लिये डायबिटीज, हार्टअटैक या ब्लडप्रेशर होना जरुरी हैं ।
अाज जितने रोग मानव को होते हैं उतने पशुओं को नहीं होते कारण उन्हें जरा भी शरीर मे अस्वस्थता लगते ही तुरन्त खाना-पीना छोडकर शांति से एक तरफ बैठे रहते हैं और एक दो दिन बाद अपने आप खडे होकर चलने लगते हैं । मोहल्ले के कुत्ते बहुत बार लंघन कर लेते है । जमीन में गड्ढा करके पैर डालकर दो-तीन दिन तक पडे रहते हैं । जब ऐसा लगता है कि अब ठीक है तब धूल झडकर तुरन्त चलने लगने है । बहुत सारे जानवर इस तरीके से चारा पानी छोडकर बीमारी दूर कर देते हैं ।
मानव ही एक एेसा प्राणी है कि जो बार बार बीमार पडता हैं और बीमार पडने के बाद भी खाना नही छोडता । डॉक्टर भी कहते है कि दवा लो, सभी चीजें खाओ । जब कि वैद्य कहता है कि, 'बाजार की तली चीजें, मैंदा, मिठाई आदि कोई पदार्थ लेना नहीं मात्र मूंग के पानी या तरल उपर रहो; जल्दी ठीक हो जाओंगे ।' खाने के रसिको को ये अच्छा लगता नहीं । इसलिये रोग प्रवेश करने के बाद मरने तक रहते हैं । कैसी जीभ की गुलामी और आत्मा की अज्ञान दशा ?
Source : Research of Dining Table by Acharya Hemratna Suriji