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हमारे अतिशय क्रियाशील, मेहनती और सहनशील अंगो को हम अनेक तरीके से हैरान कर दुखी-दुखीकर देते हैं । इस प्रकार की अनेक दवाएँ, बेकार खाद्य, पोषण रहित खाद्य, सोफ्ट ड्रींक्स, कोक, ग्लुको, केन्डी वगैरह बनावटी खाद्यों तथा ऐसे दुसरे कचरों द्वारा करते है ।
योग्य खानपान की आदत यह हमारे आरोग्य का महत्वपूर्ण नियम है । जगत में भूखमरी से मरते मानव की अपेक्षा अधिक या गलत तरीके से खाने से अधिक मानव मरते हैं ।
वास्तव में सही कहा जाता हैं कि, 'ज्यादा खाने पर भी मानव भूखा रहता हैं ।' ज्यादा खानेवाले लोगों के लिये लोग विनोद में कहते है कि, 'वे जो खाते है उसमें से एक तृतीयांश भाग उसके शरीर को पोषता है और दो तृतीयांश भाग उनके डॉक्टरों को पोषता हैं ।' अनेक लोग कांटा छुरी से खुद की कब्रें खोद रहे हैं । वे जीने के लिये खाने के बदले खाने के लिये जीते हैं ।
अच्छा खाना हकीकत में खराब खाना है । स्वाद के संतोष के लिये अच्छा खाना तबियत को नुकसान पहुँचाता है ।
हमारे लिये वनस्पतिआहार कुदरती आहार है। वनस्पतिआहारी गोरीला, बन्दर जैसे तथा सस्तन प्राणियों की शरीररचना हमारी शरीर रचना से मिलती हैं। विवेकपूर्ण वनस्पतिआहार से तीसरे भाग के रोग अपनेआप मिट जाते हैं । खून गट्ठा होनेवाली प्रक्रियावाले कोलेस्ट्रोल व्याधि के निवारक रुप वनस्पति में हरे रंग का पूरक तत्त्व क्लोरोफिल का उपयोग अकसीर हैं ।
जिनके खून में अधिक मात्रा में कोलेस्ट्रोल होता हैं उन्हे मांसाहार का त्याग करना चाहिये और ज्यादा प्रमाण में हरी सागभाजी, नमक और मसाला रहित कचुंबर के रुप में खाना चाहिये । कमनसीबी से शाकाहारीयों को भी हृदयरोग, केन्सर और डायबिटीज होता है । उनकी खुराक में शक्कर, नमक, स्टार्च और चर्बी ज्यादा होती है ।
Source : Research of Dining Table by Acharya Hemratna Suriji