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D] चार प्रकार के फल
11] बैंगन का त्याग
बैंगन कंदमूल नहीं है फिर भी वह फिजीकल हेल्थ और मेन्टल हेल्थ को बिगाड़ने वाला होने से भगवान ने उसके भक्षण का निषेध किया है । बैंगन खाने से शरीर में कफ बढ़ता है पित्त बढ़ता है । कभी भी बुखार आ जाता हैं और वह टी.बी. का रूप धारण कर लेता है । यह तो तन की बात हुई । मन की बात देखेंगे तो बैंगन खानेवाले का मन चंचल और तामसी हो जाता है । बैंगन का साग खाने के बाद मानव का मन चकराने लगता है ।
मैं साबरमती की जेल में प्रवचन करने गया था । वहाँ एक डाकू था जिसने जीवन परिवर्तन कर समाज कल्याण का काम करने का संकल्प लिया । उसने मेरे प्रवचन सुनने के बाद कहा कि, 'महाराज श्री! आपकी बात बिल्कुल सत्य है । यदि किसी व्यक्ति को बाजरी की रोटी और बैंगन का साग खाने दिया जाये तो वह दिन दहाडे सगी माँ-बहन का विवेक भी भूल जाता है, इतनी खतरनाक ताकत बैंगन में रही हुई है । मेरा अनुभव आपको कह रहा हुँ,' कोई भी व्यक्ति को पागल बना देनेवाली चीज हैं, बैंगन! समझदार इन्सान को इसका सर्वथा त्याग कर देना चाहिये ।
धर्मसग्रह में कहा है कि बैंगन नींद बढ़ाने और विकार पैदा करने वाला है।' शिवपुराण में कहा है कि, "हे पार्वती ! जो लोग बैंगन, मूला, कारींगड़ा खाते हैं वे मूढ़ हो जाते हैं। मरते वक्त मेरा स्मरण भी नहीं कर सकते।'
Source : Research of Dining Table by Acharya Hemratna Suriji